बुधवार, 11 सितंबर 2019

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

क्या ऐसा नहीं हो सकता

क्या ऐसा नहीं हो सकता
कि राम मस्जिद में रह जाए
और खुदा भी अयोध्या हो आये
हिन्दू ही मुसलमान नहीं
मुसलमान भी हिन्दू हो जाए
टुट जाये दिलों के दरमियान की
हर दिवार
और समय की धुल भी चुटकी
में उड़ जाये
बन गए जो मिलों के फासले ...
वो भी मिट जाये
और ईद दीवाली भी मन जाये
हो गयी जो राहें अलग-अलग
वो चौराहे पर एक हों
और मंजिल भी मिल जाये
अब तो जी चाहता है ""बन्धु ""
मजहब की सियासत करने वालों को
कहीं दूर छोड़ आयें
और फिर राम रहिम का भेद भी मिट जाए
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि ...............?
""देशबंधु ""

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

क्या पूछते हो 
पता मेरा
हैसियत या जात मेरी 
मिटटी का शरीर लिए फिरता हूँ 
आँशुयों के सैलाब में बहता रहता हूँ
चंद निबालों कि ख़ातिर
पूरा पेट लिए फिरता हूँ 
है खाली हाथ 
पर हर वक़्त
पाप कि गठरी लिए फिरता हूँ ...
समझ पाया न आज तक
उसको पर,साथ अपने
विचारों का भार लिए फिरता हूँ
चल पाऊँ दो कदम
मुशकिल से
पर दूनिया से होड़ लिए फिरता हूँ
गैरों कि इस दुनिया में
अकेले रहकर भी
अपनों का अभिमान लिए फिरता हूँ
मत पूछ पता मेरा
नाम बाले इस जहाँ में
बैरंग लिफाफा बना फिरता हूँ ..............
 "

गुरुवार, 14 मई 2015

मेरे शब्द :मेरे अपने : तो रो देती है माँ

मेरे शब्द :मेरे अपने : तो रो देती है माँ: आज भी कम खाता हूँ तो रो देती है माँ दुनिया बालों की बुरी और काली बलाओं से काला टिका लगा कर बचाती है माँ १ खा नहीं पाता हूँ अब फिर भी ...

मेरे शब्द :मेरे अपने : गमलों में उगने वाले लोग

मेरे शब्द :मेरे अपने : गमलों में उगने वाले लोग: गमलों में उगने वाले लोग बरगद की बातें करते हैं जो कभी हमारी बातें करते थे आज जमाने भर की बातें करते हैं कभी दिलों में रहने वाले आज आशिया...

मेरे शब्द :मेरे अपने : जब भी मैं रो लेता हूँ

मेरे शब्द :मेरे अपने : जब भी मैं रो लेता हूँ: जब भी मैं रो लेता हूँ तेरे दिए जख्म सी लेता हूँ जब भी तुम याद आते हो ग़मों के ज़ाम चुपके से पी लेता हूँ डर लगता जब तन्हाई से तेरी तस्वीर ...

गुरुवार, 29 जनवरी 2015

मेरे शब्द :मेरे अपने : वक्त

: चाहे मेरा मन पिछे मुड़ जाऊँ एक बार फिर पाठ्शाला जाऊँ सबक जिंदगी का जो ग़लत पढ लिया उसे दुरुस्त कर आऊ वक्त जो फिसल गया था रेत ...